धन और परिचय
धन और परिचय


जग में धन और परिचय का प्रभाव,
हद से बढ़ जाए या हो जाए अभाव।
दोनों ही दुखदाई हैं देखो हर हाल में,
संतुलन तो जरूरी है इनका हर हाल में।
निकाले और बचाए जो फंसने से जाल में
संतुलन की सीमा तो जरूरी है हर काल में।
धन का जब पास हमारे होगा अभाव कभी भी ,
चिंताएं घेरे रहेंगी ,दूर होगा न तनाव कभी भी।
एक पल न चैन मिलेगा बैचेनी हर क्षण ही रहेगी,
अपने ही मुंह फेर लेंगे सारी दुनिया भी ताने कसेगी।
धीरज-शांति ही मदद करेंगे ,इस संकट के काल में,
संतुलन की सीमा तो जरूरी है हर काल में।
जग में जो अगर हमारी ,अल्प सी जान-पहचान होगी,
बंटाने को गम बांटने को खुशी,मुश्किल हमें बहुत होगी।
सामाजिक प्राणी है ये मानव,न्यून सीमा में रह न सकेगा,
बिन सुनाए- सुने दुख-दर्द को,ये कैसे जीवन अपना जिएगा?
ग्रसित तन
ाव से ये हो जाएगा,जीवन के अल्प ही काल में,
संतुलन की सीमा तो जरूरी है हर काल में।
जरूरत से अधिक सीमा में धन ,चिंताएं भी संग है लाता,
सुरक्षा की असीम चिंता संग, जान के भी है दुश्मन बढ़ाता।
शक्तिहीन होते हैं हम कम परिचय में,अति भी समस्याएं है लाता,
न बहुत ही ,न ही बहुत कम,परिचय संग आनंद जीवन का आता।
व्यस्त रहें हम एक सीमा तक,फंसे न ही हम गुमसुमी के जाल में।
संतुलन की सीमा तो जरूरी है हर काल में।
अभाव भी न हमको सताए,नाम और धन सदा इतना कमाएं,
व्यवहार मिसाल रूपी बनाकर,खुश रहें और कभी न इतराएं।
शोहरत-धन रहते हैं आते -जाते ' उन्माद -गमों से खुद को बचाएं,
सीमा को अनवरत ध्यान रखकर,समभाव से हम जीवन बिताएं।
त्यागें नहीं सीमा कभी, हो सकती है ,जटिलता कल के हाल में,
संतुलन की सीमा तो जरूरी है हर काल में।