धारदार हथियार
धारदार हथियार
नहीं होती है हत्या
केवल धारदार से ही
या होती है बंदूक-पिस्टल से.
सामाजिक हत्याओं की एक परंपरा है
सामाजिक मान्यताओं, धारणाओं,
नैतिकताओं से घेर कर मार देते हैं लोग.
कितनी हत्याएं हुई है ?
कितने हत्याकांड रचे/ खाप पंचायतों ने.
कितनी महिलाओं को चिता पर लिटाया गया
सती बनाए रखने के लिए.
कितने बेटे बेटियों की बलि दे दी देवी देवताओं के आगे
अपनी मन्नत पूरी करने के लिए.
बच्चियों की छाती पर गरम प्रेस रखी गई
ताकि उभरे नहीं ब्रेस्ट
क्लिटोरिस काट डाला गया
काशी में करवत रखी गई
कि मोक्ष चाहने वाले अपनी गरदन उसके नीचे रख दे
समय बदल जाता है लेकिन
समाज नहीं बदलता है
मान्यताएं, धारणाएँ, परम्पराएं, नैतिकताएं
बदस्तूर चलती रहती है,लम्बे समय तक
एक हत्यारा समाज
अपने गले में मालाएँ डालकर
विजय श्री का वरण करता है
कि बचा लिया है समाज को नष्ट होने से
कितनी हत्याएं हुई
कितनी आत्म हत्याएं हुई
घेरकर मारनेवाली हत्या का रूप थी
ये आत्महत्याएँ
अगर समाज नहीं घेरता तो
रहते वे लोग जीवित
बड़ी आसनी से मार देते है
अनब्याही माँ की कोख से जन्मे बच्चे को
उतनी ही आसानी से मार दिया जाता है
बालिकाओं को गर्भ में या गर्भ के बाहर,
कोई गिनती है ?
समाज मूंछ पर ताव देता हुआ हमारे सामने खड़ा है
और करता है
हमारे जीवन को नियंत्रित
वृन्दावन की विधवाएं,
मरे हुए शरीर को घसीटती,
रोग और भूख से मर जाती है
विधवा से बलात्कार
उल्टा उसे कुलटा बता कर
मजबूर कर दिया
कुँए में कूदने को
कितने दलितों को कुचल डाला
उच्च वर्ण के अभिमान ने.
मालगुजारी /बेगारी नहीं देने पर सजा
धूप में बड़ा सा पत्थर उठाए खड़े रहे
और घंटे भर में मर गया / डिहाइड्रेशन से.
दलितों और स्त्रियों को सत्ता और सम्पतिहीन कर
सदा के लिए बना दिया / निर्बल
फिर भी मुकाबला किया
निर्बल होते हुए / कईयों ने रचा इतिहास.
हत्या हमेशा निर्बल लोगों की होती है
साहसी लड़ते-लड़ते मर जाते हैं
मैं एक स्त्री को याद करता हूँ
केरल की दलित स्त्री
सीना ढकने पर जिन पर था टेक्स
छातियाँ उन्हें उघाड़कर ही रखनी होती थी
क्योंकि टेक्स उनके आकर-प्रकार से तय होता था
उसने की हिम्मत
ढक दिया सीने को
कपडे से
टेक्स लेने पहुंचे अधिकारी
कहाँ से दे!
फिर भी उसने कहा- थोड़ी देर रुकें
झोपड़ी के भीतर गई हाथ में थाली लिए प्रकट हुई
ढकी थाली में गहने होंगे,
सोचा अधिकारी ने
कपड़ा हटाकर, ‘कहा, लीजिए टेक्स’
स्त्री के दोनों स्तन छटपटा रहे थे, थाली में
वे दौड़े / नहीं देखा, पीछे मुड़कर
डरे-घबराए
बलिदान याद रखेगा इतिहास
बदल गई उसके बाद परंपरा
समाज बलि चाहता है
तब कहीं इंचभर बदलता है.
बदलाव के लिए बलिदान देना होता है
जो बिरले ही देते हैं
हजारों हजार स्त्रियों को
बुरे चरित्र की बताकर ढकेल दिया कुँए में
दलितों और आदिवासियों को मार दिया
सीधे सीधे हथियारों से या
मार दिया कानून ने / जेलों में सडाकर
धार्मिक मान्यताओं ने मोक्ष के बहाने
कितनों की गरदन काशी करवट के नीचे रख दी
कितने गुरुओं, पंडो, पुजारियों, साधुओं ने किये बलात्कार.
ईश्वर की कृपा और इच्छा पूर्ति के लिए
कितनी बलियाँ दी गई
निरीही बच्चों की
कारवां अभी भी चल रहा है।