दे दो उसे जीवनदान
दे दो उसे जीवनदान
घुट रहा है दम निकल रहे हैं प्राण।
कोई सुन ले तो दे दो उसे जीवनदान।
सूख रहे हैं हलक मरुस्थल है दूर तलक।
सांस-सांस में कोहरा है इस दर्द से कोई रो रहा है।
सुन ले कोई चीत्कार दे दो उसे भी थोड़ा प्यार।
प्रकृति की हो रही विकृति अवैध खनन के नाम क्षति पहाड़ों को जा रहा काटा।
बिगड़ रहा है संतुलन हो रहा है बहुत ही घाटा।
भूकंप, सूनामी धकेल रही हमें रोज मौत के मुंह।
मंजर ऐसा देख कांप रही है रूह।
फिर भी बन रहा इंसान अनजान लिख रहा खुद ही मौत का गान।
फूंक रही चिमनियां धुएं की भरमार।
निकाल रहे कारखाने रासायनिक अपशिष्ट की लार।
नदियों के जल में मिल रहा मल सोचो, कैसा होगा आने वाला कल?
मृदा का हो रहा अपरदन ध्वनि के नाम पर भी प्रदूषण।
विकास का ऐसा बन रहा ग्राफ जंगल और जंतु दोनों हो रहे साफ।
इसलिए जानवर कर रहे हैं मानव बस्ती की ओर अतिक्रमण।
डर के मारे दिखा रहे हैं लोग उन्हें गन।
दरअसल, जन बन रहे हैं जानवर जानवर बन रहे हैं जन?
