STORYMIRROR

डर रही है बेटियाँ

डर रही है बेटियाँ

1 min
23.5K


आज मेरे देश में क्यूँ मर रही हैं बेटियाँ।

देश है आजाद तो क्यूँ डर रही हैं बेटियाँ।


है सभी पग भर तो फिर ये बोझ किसका ढो रही,

कर्ज सदियों से ये किसका भर रही हैं बेटियाँ।


हैं हरी वादी हमारी गूँजती खुशियाँ यहाँ,

रोज क्यूँ पत्तों सी टपटप झर रही हैं बेटियाँ।


याद रखना अंबिका, लक्ष्मी यही तो है खरी,

जात खुद की मार के सुख धर रही है बेटियाँ।


काम इतना कर रही है जैसे कोई यंत्र हो,

फिर भी क्यूँ जागीर से बाहर रही है बेटियाँ।


भूख लगती, प्यास लगती, फिर भी रहती बेखबर,

आज अपने आप ही भीतर रही है बेटियाँ।


शर्म कर लो तो जरा इन्सान अपनी जात पर,

ये सभी गम को भी खुशियाँ कर रही है बेटियाँ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy