डॉक्टर लड़की
डॉक्टर लड़की
एक लड़की डॉक्टर कैसे बनती है,
जब एक खुद डॉक्टर बनने का सपना रखने वाली मां
अपनी बेटी में एक डॉक्टर को देखती है।
जब वो लड़का लड़की में भेद ना कर,
दोनों को बराबर लाड़ करती है।
जब पिता को मिल रही होती है,
इलाहबाद पोस्टिंग
पर वो सुदूर एक शहर में जाकर रहना चुनती है।
जब कभी ना रोने वाली मां,
पहली बार होस्टल में छोड़ते वक़्त,
एक आंसू छुप के बहा लेती है।
जब वो दिन में 6 बार फोन करती है।
अपने जिगर के टुकड़े को खुद से
बहुत दूर होस्टल में रखती है।
जब वो अपनी बेटी की खातिर
महीनों होस्टल में ठहरती है।
चटाई पर सोती है।
दिन में एक बार खाती है।
जब पिता कहता है आखिरी पोस्टिंग गोरखपुर मिल जाएगी।
तो फिर बेटी के शहर में रहने के लिए लड़ती है।
जब वो कुछ उम्मीद ना रख कर सिर्फ देती है।
जब बुढ़ापे की लाठी कहे जाने वाले बेटे को छोड़
वो पराए घर जाने वाली बेटी का भविष्य बनाती है।
जब वो उससे घर के काम में हाथ बंटाने की उम्मीद छोड़,
पढ़ाई करने की, उड़ने की, बनने की, बोलने की,
स्वतंत्रता देती है।
जब बेटी की नौकरी लगती है,
८० किलोमीटर दूर,
तो 55 की उम्र में सुबह 5 बजे उठ, नाश्ता,
खाना बना नहा, उसके साथ
2 घंटे बस में बैठ संग जाती है।
जब सब कुछ कर जाती है,
पर अपने मुंह से कुछ ना जताती है।
कुछ ना मांगती है,
बस देती जाती है।
तब एक लड़की डॉक्टर बन पाती है।
