डगर कितनी भी कांटों में हो
डगर कितनी भी कांटों में हो
डगर कितनी भी काँटों में हो
सफर में हमेशा अडिग रहा हूँ
हर राह हर कदम साथ रहा सबके
मगर आज मेरी परछाई पे भी शक रहा है
कैसे साबित करता कुछ भी
जब मेरे नियत पे भी भ्रम रहा है
बस होने को हो रहा सबकुछ अब
मैंने सबकी जुबान पे खंजर रख दिया है
टूट टूट कर अलग हो बिखर जाओगे ए कामिल
ख़ामोश हो तुमने वजूद को भी नीलम कर रखा है।
