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दौर बदल चुका है

दौर बदल चुका है

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एक वो भी दौर था जब बीवी घर संभालती थी 

और पति बाहर की दुनिया मे कमाई का ज़िम्मा

दोनी ही अपने अपने कामो में रहते संतुष्ट थे।


बीवी की हर पल रहती पति के बटुए पर नजर थी

हर पल उसकी ये ही चाह रहती की

पति की पूरी कमाई पर उसका हो हक

ना दे कोई पैसा अपनी माँ बहन को

बस सब उसके हाथों में थमा दे

इसलिए चुपके चुपके उसके बटुए

से वो चन्द रुपये उड़ाया करती ।


अब तो दौर बदल चुका है

बीवी भी हो गयी है पढ़ी लिखी

उसकी अपनी जेब

अपना बटुआ भी है भरा हुआ 

नही होती उसको परवाह की

पति के बटुए में क्या है कितना है

खुद वो हो गयी है सक्षम इतनी की

किसी की मोहताज नहीं।


मिलजुलकर अब गृहस्थी का

बोझ उठा रहे है दोनों

हंसी खुशी जीवन अपना बीता रहे

दोनों बन जाते हैं एक दूजे का सहारा

नहीं रहा वो दौर अब पहले जैसा

पति के बटुए पर नजर हो पत्नी की।


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