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Narendra Singh

Inspirational Comedy

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Narendra Singh

Inspirational Comedy

दावाग्नि

दावाग्नि

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शांत सरल वन्य जीवन

बाह्य तत्व का

नहीं कोई हस्तक्षेप।

इस भाग्यहीन वन में

एक दिन अकस्मात ही

शिकारियों का दल आया

शिकार किया, पकाया, खाया

और पीछे छोड़ गए

कुछ राख कुछ चिंगारी।

रक्त समान बिजली देख

अनिष्ट की आशंका से

वृक्षों की शाखें काँपी,

चिंगारी को हवा दी

पत्तों ने हिलकर,

फिर, अग्नि प्रज्वलित

वन-क्षेत्र में हुई विस्तारित

हवा में घुल मिलकर,

सहमा-सहमा जैव-धन

भयाक्रांत प्रकृति

निष्ठुर दावाग्नि के समक्ष

हरिण की चपलता भी

हो गई खामोश,

तड़पते मरणासन्न जीव

सिसक रहे कि

चिंगारी पड़ी थी चुपचाप

उसे भड़काया - हवा ने

सारे वन में फैलाया – हवा ने

हवा ने थमकर, सफाई दी –

“मुझे तो वृक्षों ने किया उत्पन्न”

वृक्ष बौखलाए

“हम तो चिंगारी देख कर काँपे थे”

शनै शनै दावाग्नि ने

समग्र वन को

आगोश में ले लिया

कुछ पलों बाद

तप्त दिशाओं को विश्राम दिया

तो शेष रही

बहुत-सी राख, बहुत-सी चिंगारीI

सारे वन में दोषारोपण की

गूँज तड़पती रही

अंतिम श्वास तक

पर, किसी ने यह नहीं पूछा –

“वो चिंगारी वन में आई कैसे”

 

 


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