दास्तान-ए-मोहब्बत
दास्तान-ए-मोहब्बत


मैं और तुम
हम मिलकर एक नयी दास्तां लिखें,
जो उन्मादों से भरी हो,
संवादों से परे हो।
प्रेम की स्याही जहाँ
अल्फाज़ उकेरे,
समाये हों जहाँ साथ
बितायी उन शामों के अफ़साने,
उन अनकही बातों के मायने,
वो लफ्ज़ जो जुबाँ तक आये ही नहीं,
वो जज़्बात जो दिल ने कभी
जाहिर किये ही नहीं,
एक दास्तां जो ख्वाबों से परे हो,
यथार्थ के समीप हो
मेरी या तुम्हारी नहीं
हमारी दास्तां ।।