मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं ,
मेरी तन्हाई,
अधखुली खिड़की से झांक कर
आती रोड लाइट की रौशनी ,
अक्सर एक दूसरे से बातें करते हैं।
मैं अकेली,
तन्हाई तन्हा,
वो रौशनी एकाकी,
अक्सर इन अंधेरी रातों में एक
दूसरे का दर्द सांझा करते हैं।
दिन होते ही,
मैं दुनिया भीड़ में,
तन्हाई किसी कोने में,
वो रौशनी दिन के उजाले में,
अक्सर खो जाया करते हैं।
फिर लंबे इंतजार के बाद कानों में
दाखिल होती है रात के कदमों की आहट।।