चरित्र
चरित्र
ये एक ऐसा शीशा है,
जिसे केवल अपने
सत्कर्मयोग द्वारा ही
सुरक्षित रखा जा सकता है,
अन्यथा कतई नहीं!
अपने चरित्र को
बिन साबुन-पानी के
केवल अपने
सुविचारों से ही
परिष्कृत किया जाना
संभव है,
अन्यथा नहीं।
