चरित्र
चरित्र
कहो कारण क्या
दुविधा का मित्र?
सखे कहो क्या
इंसान का चरित्र?
गिरता ही जाता
क्या है कारण?
मालूम हो तो
कहो निवारण।
कटुता , तृष्णा,
क्षोभ, घृणा,द्वेष
बनाया यह क्या
मनुज ने भेष??
कुविचारों में लिप्त
नित होता पतित
आख़िर क्यों भुला
उसने है अतीत?
जब करते सभी
पर अनुसरण।
जीते जी करते
खुद का मरण।
स्वविवेक जगाओ
अपने भीतर झाँको
क्या करें सुपथ को
मित्रों स्वं में झाँको।।
सद्भावना, संस्कारों
से सुयोजित चित्र
अपने दृष्टिकोण से
बनायें अपना चरित्र।।