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Laxmi Yadav

Inspirational

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Laxmi Yadav

Inspirational

चंद्र घंटा और कोरोना

चंद्र घंटा और कोरोना

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तारक मणि मंडित से झाँक रही थी माता

करके मस्तक पर चंद्रमा का श्रृंगार

घंट लिए हाथ मे होके शेर पर सवार

आज देवलोक से पृथ्वी लोक पर है जाना

सुना हैं वहा विचर रहा कोई राक्षक कोरोना


ना बज रहा मंदिरों में ढोल मजीरा थाप

ना हो रहा चौराहों पर यज्ञ हवन जाप

जाने कैसा प्रलय है आया

जन जन मे मृत्यु का भय समाया

दुःख की बदली छाई है घंघोर घटा सी


मायूसी छाई है चहु ओर निस्तब्ध निशा सी

ओ ह इस परलोक का हाल कभी न देखा ऐसा

स्वप्न लोक की ऐसी कैसी दुर्दशा

देख किंकर्तिया विमुध हुआ देवी का मुखमंडल

स्वयं तरुवर प्रकट हुए ले हाथों मे जल

हे माता चंद्रघंटा तुम अनंत अमर सर्वव्यापी


तुम इतनी व्यथित व विचलित न हो

मानव का स्वयं रचा मायाजाल है

जिसमें खुद ही बन रहा कंकाल है

अपने सपनो की खातिर मेरा वंश नाश कर डाला

अपने आशियाँ की खातिर पंछी के घरौंदे को उजाड़ डाला


स्वेद से रंजित माता समझ रही थी

आँचल से स्वेद अश्रु पोंछ रही थी

पर सहसा खड़ी हुई मा मुख पर तेज लिए

हाथों मे घंटा उठा लिया आह्वान किया


बहुत हुई सबकी मनमानी

बस अब तो घंटनाद ही घंटनाद होगा

कोरोना को अब उसमे स्वाहा होना ही होगा

मानव को अब अपना प्रायसचित् करना ही होगा

अब से ना चलेगी कुल्हाड़ी किसी वृक्ष पर


अब से ना होगा बंधन किसी जीव पर

स्वछंद उन्मुक्त फिजाओं मे पक्षी विचरें

हरित तरुवर झूमेंगे अपनी मस्ती में।


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