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Anupam Phoenix Srivastav

Romance Tragedy

4  

Anupam Phoenix Srivastav

Romance Tragedy

चलचित्र

चलचित्र

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365

किसी चलचित्र के समान लगता है, जीवन का ये पहर,

वक़्त हो चला था शायद, उनके अलविदा कहने का हुज़ूर,

दोनों को पता था, दिल ही दिल में, चलचित्र कहाँ वास्तविक होते है,

कुछ उमंगें कुछ तरंगें कुछ उत्साह, साथ जीवन जीने का था ज़रूर,

वक़्त हो चला था शायद, दूर हो जाने का, होंठों पर झूठी मुस्कराहट लिए,

थामे हाथ, आँखों में लिए प्यार एक दूसरे का, बारिश की बूंदों में सराबोर हो,

तब भी जब कही जाना ही नहीं था, तब भी जब कोई मंज़िल ही नहीं थी

कही कोई संग का ठिकाना ही नहीं था ,प्यार ने ही किया उन्हें मशहूर

किसी कहानी सी मालूम पड़ती है, किसी चलचित्र की कहानी,

साथ देते थे वो दोनों, एक दूसरे का, चाहे कितनी भी हो परेशानी,

यादों के झरोखों में जब देखते है हम साथ रहते थे, हँसते मुस्कुराते लड़ते

फिर संग रोते एक दूसरे के याद कर के की कैसे थे झगड़ते, क्या था उनका कसूर ,

वो प्यार के दिन, और सवालों के दिन, हँसते मुस्कुराते खयालों के दिन ,

जो मिल कर बिताये थे संग हमने , रोते हैं जिनकी याद में, वो मिसालों के दिन,

वक़्त बदला है, वो बिछड़ने वाले है और पता तो था उन्हें भी ये पहले से,

एक सा नहीं रहता कभी, कमबख़्त ये वक़्त होता है मगरूर.

मौसमी बरसात की बूंदों में अपने आँसुओं को छिपाते, दोनों मुस्कुरा रहे है,

उसी चलचित्र की कहानी के जैसे, जो आदर्श बन गयी थी उनकी

इस उम्मीद में की दुनिया खत्म नहीं हो रही उनकी, वो मिलेंगे एक दूसरे से

जैसे एक चलचित्र के अंत होने पर किरदार रहता है जीवन से भरपूर

एक उम्मीद सी है उनको भी उनका प्यार जीवित रहेगा सदा

बाहें फैला कर आखिरी बार एक दूसरे की बांहों में समां जाना

कितनी मोहब्बत बाकी है ये बस इशारों में ही बता जाना

परवाह है मगर फिर भी, बोलता नहीं कोई, चेहरे पर छाया है नूर.

एक अनंत शांति की ओर अग्रसर , बारिश की बूंदों में आँसुओं को छुपाते,

सहमे हुए अपने चेहरे पर, दोनों ज़बरदस्ती मुस्कान लाते हुए,

क्या पता इल्म हो दोनों को, की ये उनके जीवन की आखरी मुलाकात हो.

आखिर टूट ही गया जो था उनको, उनकी मोहब्बत का गुरूर


ख़त्म हो गया हो जैसे, इस चलचित्र का वक़्त भी,

लहूलुहान उम्मीदों के बोझ का, बहता हुआ रक्त भी,

जीवन के इस चलचित्र के संग ही, ख़त्म हुआ,

उनके ऊपर छाया संग - संग जीने और मरने का फितूर.



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