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Anjali Sharma

Abstract

3  

Anjali Sharma

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चला रे पथिक

चला रे पथिक

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चला रे पथिक फिर अनजान राह की ओर

नए जीवन की खोज में नापने ओर छोर।


अनजाने क्षितिज पुकारें

बुलाये दूर देश का स्वप्न

दिन बीते बाट जोहते आतुर

नयन देखने रुपहला गगन।


न बैठा जो कभी गाड़ी रेल में

आज चढ़े गगनचुम्बी विमान

न देखी ऐसी दुनिया न छुआ था यूँ आसमान

देखे तो थे बस गाँव के जर्जर धूमिल पीले मकान।


साहस था टूटा एक बार देख माँ के आंसू

कौन करेगा रोटी रात की कौन पूछेगा पानी

कौन बिछाएगा पुरानी खटिया पर

मां की गोद सी बिछावन पुरानी।


मुनिया भी बोली थी भैया

किसको बांधूंगी राखी,

पास नहीं बिदेस कैसे भेजूंगी 

रोली चावल पाती।


नहीं रे बहना न दिल छोटा कर

लाऊंगा गुड़िया चुनरी धानी

पढ़ा लिखा के बनाऊंगा तुझको

भी महलों की रानी।


मन बहला फिर निकला

झोली भरकर यादें सारी

चला छोड़ घर बार जो बेटा

बनने मजूर दिहाड़ी।


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