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Anjali Singh

Abstract

2.9  

Anjali Singh

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चल चला है दिल

चल चला है दिल

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चल चला है दिल बढ़ चला है दिल 

तरासने खुद को कोयले की खदान से 


हीरे जैसे मन को निकालने खदान से 

चल चला है दिल बढ़ चला है दिल 


सागर की गहराई से भी गहरे मन से 

ढूंढ़ के मोती एक धागे में पिरोने


चल चला है दिल बढ़ चला है दिल 

इस बेचैन मन को खुद से मिलाने 


चल चला है दिल बढ़ चला है दिल 

चल चला है दिल चल चला है दिल।


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