चक्र समय का
चक्र समय का
चक्र समय का घूमता अविराम
कब कहाँ, किसी के रोके रुका
आज पतझड़ कल बसंत
यही क्रम, सतत् निरंतर !
कब कहाँ, कोई हुआ नष्ट
कथा यह, चल रही चिरंतन
जर्जर तज, ओढ नव-काया
बारंबार होता, पुनरागमन !
आदमी कब, कहाँ हुआ निर्लिप्त
पात होता, नव-पल्लवित
पुष्प होता, नव-कुसुमित
जीवन की है, यही कहानी
यात्रा, हर युग की अविराम !
आज का यही, मेरा वर्तमान
कल भी था, कल भी रहूंगा
कभी नहीं लेता, कहीं विश्राम
समय कभी होता नहीं व्यतीत !
वर्तमान ही बनता है अतीत
चक्र समय का घूमता अविराम
कब ,कहाँ, किसी के रोके रुका।