STORYMIRROR

gyayak jain

Abstract

3  

gyayak jain

Abstract

चिट्ठी जो लिखी पर पढ़ी नहीं

चिट्ठी जो लिखी पर पढ़ी नहीं

1 min
352

शब्दों के ताल से कुछ

घड़े पानी के निकाले थे

छिड़का उनको पन्नों पर,

कब अल्फ़ाज हुए न पता चला।


चिट्ठी थी या सिर्फ कागज था,

भावों का कर्ज बराबर था

जो चुका दिए फिर लोग कहेंगे,

शायद कुछ खोट तुम्हारा था।


मन की हर बात लिखी उसपर,

कुछ बडीं सी थीं, कुछ बचकानी

फिर सोचा शायद ये पैग़ाम नहीं,

ये चिट्ठी थी जो कभी पढ़ी नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract