छुपा छुपाई
छुपा छुपाई
चाँद को आगोश में, अपने
वो लेकर चल पड़ा।
बादल गगन से खेलने,
छुपा छुपाई चल पड़ा।।
चाँद को था कहां हुनर,
कि बातों में आना नहीं,
बनकर बेचारा बावरा,
उसकी ही राह चल पड़ा।।
छुपा के उसकी रोशनी,
बादल वो यूं चमक उठा,
चाँदनी को मिटा के फिर,
संग हवा के चल पड़ा।।
मचल रहा है चाँद यूं,
ललना ज्यूं माँ की गोद में,
रात आधी राह तके है,
चाँद आगे चल पड़ा।।
बादल गगन में खेलने,
छुपा छुपाई चल पड़ा।।