माँ
माँ
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जब दस बज गए कहकर ,
वो जगाती है तब,
घर घर सा लगता है।
हर रोज़ सात बजे को,
दिन चढ़ आया कहती है, तब ,
घर घर सा लगता है,
महक जाता है हर कोना,
धूप दीप की सुगंध से, तब ,
घर घर सा लगता है।।
रसोई से आती है जब,
आवाज़ कड़छी की, तब,
घर घर सा लगता है।।
बिखरे हुए जीवन को,
जब समेट देती है चुपके से, तब,
घर घर सा लगता है।।
घंटों मन्दिर में बैठकर,
दुआएं सबको देती है, तब,
घर घर सा लगता है।।
चुपके से छनक जाती है,
जब उसके पाँव की पायल,तब,
घर घर सा लगता है।।
अपने आँचल में बाँध लेती है,
घर भर की बलायें, तब
घर घर सा लगता है।।
वो होती नहीं घर में ,
तो वीरान हो जाता है,
माँ होती है घर में तो,
घर घर सा लगता है।।
घर घर सा लगता है।।