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vijaya Shalini

Abstract

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vijaya Shalini

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काॅलेज की कैंटीन

काॅलेज की कैंटीन

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कभी फुर्सत मिले तो कहना,

     वही उधार के क़िस्से।

काॅलेज की कैंटीन के,

    वो बेशुमार से क़िस्से।

चाय के कुल्हड़ को,

   धीरे से साफ़ करना

समोसे उधार लेकर,

  बिल दूसरे को पास करना।

टाफियां जो मिलती थीं,

    रुपए में ,दो चार के किस्से।।

मन करता है फिर से,

   उन्हीं दिनों में लौट पाएं,

क्लास बंक करके,

  थोड़ी मस्ती कर आएं।

बैठकर वहीं कर लें,

   याद बेकार के क़िस्से।।

जब दोस्त थे केवल,

  कोई छोटा बड़ा न था,

परीक्षा के दिनों में पर,

   कोई भी सगा‌ न था।

रात और दिन की बातें,

   और ऐसे हज़ार से क़िस्से। 

 फिर फुर्सत मिले तो कहना,

     वही उधार के क़िस्से।।।



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