छल कपट
छल कपट
लगता है सब कुछ पा लिया है,
छल कपट से सब हथिया लिया है।
पर इससे बड़ा कोई मुगालता नहीं
छल कपट ज्यादा दिन चलता नहीं।
छल से सोने का हिरण बन
मारीच ने सीता जी को लुभाया था,
इंद्रदेव ने बन गौतम ऋषि,अहिल्या
को भी बरगलाया था।
जिसने जो भुगतना है वो तो
अपने कर्मो स्वरूप भुगतेगा ही,
पर कपटी व्यक्ति बिन बात कर्म
जाल में उलझेगा ही।
उस दाता के दरबार में हरेक
के कर्मो का है पूरा खाता।
वो न किसी को रत्ती भर अधिक
देता न ही किसीके हिस्से कम जाता।
फिर क्यों तुम छल कपट कर
ज्यादा हड़पने की कोशिश करते।
क्या नहीं जानते,हर ऐसी वस्तु ब्याज
सहित ही तुम लौटाते?
सीधा सरल जीवन है सबसे अच्छा,
सच का साथ न होता है कभी कच्चा।
हो सकता है तुम्हें कम मिलता दिखे
पर जो दिखे,वो ही कहां सच दिखे?
रखो उस रब के न्याय पर विश्वास,
वो तोड़ता नहीं सच्चे दिलों की आस।
छल कपट से जल्दी पा लोगे पर
अपना लोक परलोक भी बिगाड़ लोगे।
