चांदनी और ठंडी रेत
चांदनी और ठंडी रेत
धूप गर्म हो अगर,
और सूनी हो डगर,
हवाऐं भी खामोश हों,
जो अश्क ही हों हमसफर?
तुम रास्ते से पूछना,
है किस गली मे कोइ घर,
जहां ठंडी रेत ओढ़लें
हम चांदनी में झूमकर!
ठोकरें हो दर बदर,
कट गए हों जैसे पर,
ना जान ना पहचान हो
अनजान भी हों जानकर,
तुम रास्ते से पूछना,
है किस गली मे कोइ घर,
जहां ठंडी रेत ओढ़लें
हम चांदनी को चूमकर!
हौसले जो पस्त हों
शिकस्त हो शामो-सहर,
ना ज़िंदगी से आस हो,
ना पास मे हो रहगुज़र,
तुम रास्ते से पूछना,
है किस गली मे कोइ घर,
जहां ठंडी रेत ओढ़लें
हम चांदनी में बेफिकर,
गम जो आ के पूछ ले,
क्यों कर रहे हो तुम सफर,
थमने की चाह भी ना हो,
ना चलने मे हो कोई डर,
तुम रास्ते से पूछना,
है किस गली मे कोइ घर,
जहां ठंडी रेत ओढ़लें
हम चांदनी को थामकर,
कल जो मेरे साथ थे,
वो अब चुरा रहे नज़र,
अब कहें तो क्या कहें,
जो चुप रहो ये सोचकर,
तुम रास्ते से पूछना,
है किस गली मे कोइ घर,
जहां ठंडी रेत ओढ़लें
हम चांदनी में घोलकर।