बूंंद
बूंंद
कुछ ख़्वाब हैं उस कब्र में, जो कब्र अब तक खुदी नहीं,
ज़िद्दी लपट हूँ उस आग की, जो आग अभी बुझी नहीं।
खैरियत में पूछ लो, खैफियत हर जान की,
पसीने में खून है, ये ज़िदगी ईमान की।
हौसले हैं चाँद पर, कि चाँदनी भीगी नहीं,
हथेली है आग पर, और बर्फ भी पिघली नहीं।
भीड़ की हाहाकार में एक वीर की अब खोज है,
मिल गया तो "राम", नही तो "सत्य है" का शोर है।
अब उम्र हुई उस कलि की, जो फूल अभी तक बनी नहीं,
खैर वो अराली की कलि है जो देव पर चढ़ती नहीं।
बरखा की एक बून्द है, जो धरा पर बिखरी नहीं,
चाँदनी में ओस बन, वो रेत में लिपटी नहीं।