बूंदें...
बूंदें...
जब गरजकर बरसती है बूंदें ,
दिल में शोर मचाती है बूंदें ,
भिंगती है दिल में यादें ,
उसकी याद में तरसती है बूंदें...
यूं झूम के जब माटी से मिलती है ,
खिल उठती है माटी ,
खुशबु उसकी फैलती है ,
प्यार में वो भी झूमती है ...
दिल की गहराहियों में,
उतरती है बूंदें ,
पलकों में ख्वाब बन के ,
सजती है बूंदें ...
फूलों को छू के निकलती है,
पत्तों में छुप के बैठती है ,
सूरज की रोशनी से झिलमिलाती है,
एहसास प्यार का जगाती है...
आरजू में कभी तरसती है बूंदें,
भिगो के भी प्यासा रखती है बूंदें,
मिलती है ऐसे सूखती है बूंदें ,
फिर से गरजकर बरसती है बूंदें ...