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Manisha Wandhare

Abstract

4  

Manisha Wandhare

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बूंदें...

बूंदें...

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जब गरजकर बरसती है बूंदें ,

दिल में शोर मचाती है बूंदें ,

भिंगती है दिल में यादें ,

उसकी याद में तरसती है बूंदें...

यूं झूम के जब माटी से मिलती है ,

खिल उठती है माटी ,

खुशबु उसकी फैलती है ,

प्यार में वो भी झूमती है ...

दिल की गहराहियों में,

उतरती है बूंदें ,

पलकों में ख्वाब बन के ,

सजती है बूंदें ...

फूलों को छू के निकलती है,

पत्तों में छुप के बैठती है ,

सूरज की रोशनी से झिलमिलाती है,

एहसास प्यार का जगाती है...

आरजू में कभी तरसती है बूंदें,

भिगो के भी प्यासा रखती है बूंदें,

मिलती है ऐसे सूखती है बूंदें ,

फिर से गरजकर बरसती है बूंदें ...


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