बूढ़ी गाँधी
बूढ़ी गाँधी
एक नाम जो रहा गुमनाम
था मातंगिनी उनका नाम,
अनपढ़,गरीब,बूढ़ी नायिका
बनीं देश की परिचायिका,
60 के वृद्ध से हुआ विवाह
18 वीं साल की हुई विधवा,
नहीं थी अपनी कोई संतान
सौतेलों ने दिया कभी न मान,
रहने लगी कुटिया बनाकर
पेट भरती जैसे-तैसे कमाकर,
जीवन में कभी वे हार न मानीं
डोर उन्होंने कसकर थी तानी,
जीवन था उनका संघर्षरत
देशभक्ति में रहती उद्यत,
रग-रग में आजादी का प्रवाह
था जवानों से बढ़कर उत्साह,
चलीं गाँधी के पदचिन्हों पर
तय किए आँदोलन,कईं सफर,
वन्दे मातरम् का करके उद्घोष
भरा सभी में देशभक्ति का जोश
उनका लक्ष्य बस था आजादी
थीं पूर्णतया वे गाँधीवादी,
उम्र की सारी सीमा लाँघकर
चलती सिर पर कफन बाँधकर,
अपने बलबूते अपने दमपर
नाम हो गया उनका अमर,
मिला गाँधी के तुल्य सम्मान
"बूढ़ी गाँधी"का पाया मान,
रहती गाँधी के आँदोलन-संग
था उनका वीर जवानों सा ढंग,
बनकर चलती वो आँधी थी,
वो कहलाई "बूूढी- गाँधी" थी।