बूढ़ा बरगद
बूढ़ा बरगद
मैं गाँव का बूढ़ा बरगद तुम सब का विश्वासी हूं
नहीं किसी का शत्रु बल्कि मैं तो सर्व हितैषी हूं
ना जाने कितने परिंदों ने है मुझ पर घर बनाया
सदियों से मैं तुम सब की हूं रक्षा करता आया
कहीं कमी ना पड़ने दूँ मैं ऑक्सीजन दूँ भरपूर
बदले में कुछ ना चाहूं मैं और नहीं करता मजबूर
धूप भरी गर्मी में तुम सब मुझसे छाया पाते
मेरी औषधि के दम से हैं कितने रोग मिटाते
धार्मिक पर्व उत्सव विशेष पर मुझ को पूजा जाता
बदले में यह जनजीवन मेरी आशीष है पाता
बिना किसी की मदद लिए दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाऊँ
सदियों सदियों तक जीवित रह तुम सब के काम में आऊं
युगों युगों से तुम सबका देता हूं ऐसे साथ
दुख सुख में प्रतिदिन जैसे संग रहें माँ बाप
