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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"बुझा दीपक"

"बुझा दीपक"

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बुझा दीपक फिर से जलेगा

आशा का नव फूल खिलेगा

थोड़ा धैर्य रख तू मुसाफ़िर,

मंजिल पथ फिर से मिलेगा


चंद शूलों से क्या घबराता है?

रात के बाद सवेरा आता है,

यह नवतरु फिर से खिलेगा

यह पतझड़ फिर से खिलेगा


असफलता होती क्षणिक है

सफलता पथ बताती ठीक है

तू चलता चल, तू जलता जल,

यह दीपक फिर से लड़ेगा


उठ खड़ा हो, मत निराश हो,

कर्म करने फिर से तैयार हो,

यह आसमाँ फिर से झुकेगा

बुझा दीपक फिर से जलेगा


जो लगातार पथ पे चलता है,

वो पत्थरों पर निशां करता है,

लक्ष्य-नक्षत्र फिर से मिलेगा

खुद पे भरोसे से पर्वत हिलेगा


आलस्य की चादर बस फेंक दे,

फिर अपनी करामात तू देख ले,

तेरे श्रम से बंजर मरु खिलेगा

बुझा दीपक फिर से जलेगा



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