बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापा भी बचपन के
जैसा चंचल होता है,
नटखट बालक के जैसा
मन बिहवल होता है।
ज़िद्दी होती है आशाएँ
उम्मीदें होती हैं,
बच्चों जैसे भाव हो
वैसा सपना होता हैं।
जो कहता है सनक बुढ़ापे
की ये अजब कहानी है ,
बिन बुजुर्ग के घर घर है ना
ना कोई जिंदगानी है।
बिन बुजुर्ग के घर में लोरी
और कहानी कहाँ रही,
दादा के संग बचपन की
यादों की रवानी कहाँ रही ।
हैं बुजुर्ग घर में तो घर है
संस्कार की परिभाषा है
सनक नहीं है यह
मर्यादा पराकाष्ठा की आशा है।