बुद्ध व्यक्ति नहीं करुणा हैं।
बुद्ध व्यक्ति नहीं करुणा हैं।
बुद्ध व्यक्ति नहीं
करुणा हैं।
पुराण पुरुषोत्तम की करुणा
जो युगों-युगों से
महाभारतों के रण की
तपते बैसाख सी
पश्च पीठिका में
दग्ध क्लांत मनुष्यता के
प्रायश्चित अश्रुओं की
परिणिती में
तिमिराछन्न विभा को
तथागतता के पूर्ण चंद्र की
स्निग्ध शीतल आभा से
सुखालोकित करती
अवतरित होते आई है।
हुई थी
हो रही है
होती रहेगी।
भटकी हुई मनुजता को
दिशा दिखाती
दुःख से सुख की ओर
घ्रणा से प्रेम की ओर
हिंसा से करुणा की ओर
आज भी
एक बैसाख की पूर्णिमा है
और मन
बुद्ध होना चाहता है।