बटुआ
बटुआ
बटुए की कहानी, थोड़ी है निराली,
पति करे सदा बटुए की निगरानी।
पत्नी को भाए ना अपनी जेब खाली,
बिन पैसे कैसे होगी मनमानी।
न होगी किटी पार्टी और न रमी,
सहेलियों पर भला कैसे धाक जमेगी।
पत्नी बोले - नोट चाहिए मुझे हरी -हरी,
जेबें मेरी भी हो साजन - भरी - भरी।
मैं हूँ घर सँवारती फिर क्यों दिखाते हो कड़की,
छोड़ भी दो अब बटुए की निगरानी।
या तुम घर सम्हालो और मैं करूँगी नौकरी,
फिर तेरे बटुआ सा ही होगा मेरा बटुआ भी भारी।