बस तुम ही तुम हो
बस तुम ही तुम हो
नेह भरा और हर्षाता सा-
मेरे जीवन का आगाज,
मात-पिता,भैया-दीदी-
सबपर मुझको नाज।
यौवन के सोपान चढ़े पग-
मिला सुभग स्नेही,
रघुवीर से मिले मुझे वो-
मैं उनकी वैदेही।
दरस-परस से सिहरा गात-
प्रथम प्रेम था खास,
पावन,निश्छल,पगलाता सा-
हुआ अजब अहसास।
बंधे युगल हम नेह-डोर से-
जकड़न भाती जाती,
भोर उगीं अंगड़ाई लेती-
रात डूबीं मदमाती।
प्रेम-दिवस कितने ही आएं-
प्यार कभी न कम हो,
दिल के हर कोने में बैठे-
बस तुम ही तुम हो।