बस तेरे साथ
बस तेरे साथ
कुछ सुकून के पल गुज़ारने है उसके साथ
ज़िंदगी का तो पता नहीं पर
आख़िरी साँस से साँस मिलानी है उसके साथ
कि साहब जन्नत तो नहीं देखीं
ना देखा है हूर की परियों को
पर हाँ कई बसंत देखने है
सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके साथ
की जनाब धड़कन भी धड़कता है
नब्ज और नस्लों के साथ
बस अब धड़कन को वैसे भी धड़काना है
उसकी मुस्कुराहट और हँसी के साथ
यूँ तो ज़िंदगी जीनी है कई हसरतों के साथ
पर बस अब ज़माने देखने है
साथ चलते तेरे मेरे कदमों के साथ ।।

