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Mohanjeet Kukreja

Abstract

4.6  

Mohanjeet Kukreja

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बरसात का मौसम

बरसात का मौसम

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इन दोनों के दरमियाँ कुछ रिश्ता तो है ज़रूर

हरेक बारिश में यह दिल मचलता तो है ज़रूर


शर्माते हुए छिपने की कोशिश हज़ार करता है

भीगने के बाद हुस्न और निखरता तो है ज़रूर


तमन्ना कुछ तो पहले ही जवान हुआ करती है

बेताबियाँ बढ़ाने को चांद निकलता तो है ज़रूर


इश्क़ पे क्या ज़ोर है चाहत को किसने रोका है

अरमाँ की तपिश में जिस्म जलता तो है ज़रूर


गुफ़्तुगू है ग़ैर-ज़रूरी और ख़ामोशी बे-असर

सर-गोशियों से फ़ासला सिमटता तो है ज़रूर


बरसात का मौसम भी कितना ग़ज़ब ढाता है

सराबोर हो तन-मन पर सुलगता तो है ज़रूर


फ़ितरत इसकी कैसी भी हो, यह मगर तय है

संभलने से पहले ये दिल बहकता तो है ज़रूर।



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