STORYMIRROR

Sopan Raj

Abstract

3  

Sopan Raj

Abstract

बिक रहा

बिक रहा

1 min
219


बेचने को क्या है,

कोई ज़मीर बेचता है,

कोई जागीर बेचता है,

कोई खाव्व बेचता है,

कोई ख्वाहिश बेचता है,

कोई ईमान बेचता है,

कोई मकान बेचता है,

तो, कोई तिलहन, 

तो, कोई धान बेचता है,

कोई कलम की धार बेचता है, तो

 कोई मिट्टी का आकार बेचता है

कोई सोना, चांदी, तो

कोई कबाड़ बेचता है,

बेचने को क्या,

कोई जिस्म बेचता है,

तो, कोई उन जिस्मों 

पे लिबास बेचता है,

हमने तो बिकते देखा,

इश्क़ में हज़ार को,

किसी को प्यार से,

किसी को प्यार में,

तो, किसी को प्यार के लिए,

तो, कोई बिक रहा,

घर में बैठे, बूढ़े मां-बाप के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract