बीती रात
बीती रात
जब आता है स्वर्ण सवेरा, तिमिर रात का जाते हैं भूल
बंद कली सब खिल जाती हैं, और खिल जाते कमल के फूल
रजनी - तम दु:ख का प्रतीक है, उषा प्रकाश सुखद अहसास।
बंद कली तो शरद का मौसम, मुकुलित पुष्प हैं ज्यों मधुमास
अवस्थाएं सारी जीवन की हैं, अति विशिष्ट और बड़ी ही खास
हर पल हर्षित रहकर के गुजारें, हम फटकने न दें गम को पास
सुख- दु:ख से निर्लिप्त रहें, मानो हैं ये चिकनी धूल।
जब आता है स्वर्ण सवेरा..
दु:ख के बादल शीघ्र छँटेंगे, धरे रहें हम मन में धीर
कोई नहीं वीर हुआ धरती पर, नहीं सहा हो गम का तीर।
सच्चा वीर साहसी है वह जो , मरुभूमि में निकाले नीर
रखें हौसला सदा ही ऊँचा, बदल दें किस्मत की तस्वीर।
अथक प्रयत्न रहेंगे करते, निश्चितहटेंगे सारे पथ के शूल
जब आता है स्वर्ण सवेरा.....
कमल पुष्प हैं खिलें पंक में, इनकी है मनभावनी छटा
जीवन तो है एक स्वप्न सा, जो है सुख और दु:ख में बँटा।
ना घबराएँ असफलता से, प्रयास में कुछ रह गया घटा
उसे सफलता निश्चित मिलती, जो लक्ष्य प्राप्ति तक रहे डटा।
जीवन है गुलाब की शैय्या, जहां सुमन संग हैं तीखे शूल
जब आता है स्वर्ण सवेरा....
