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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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बीती रात कमल दल फूले

बीती रात कमल दल फूले

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आज अगर अंधियारा है तो

कल सूरज निकलेगा

ऊपर वाले बहुत बड़े हैं

कोई न कोई हल निकलेगा।


धैर्य धीरज धरे चलो तो

पावन पुनीत यह गंगा होगा

भाई बंधु सखा मिलेंगे

झूठों का ना धंधा होगा।


बीती रात कमल दल फुले

फूलों सा जीवन रंगा होगा

कालचक्र में न फंसे कोई

होठों पर बहता गंगा होगा।


काली करतूतों का दौर चला है

उल्टा सीधा धंधा होगा

मेरा तेरा कह - कह कर 

अपना अपना बनाता होगा।


आदि जग अनादि का है

कौन किसका सुनता होगा

तारण हार सोचे कभी तो

अपना अपना कहता होगा

अपना अपना कहता होगा।


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