भयानक रात
भयानक रात
बिलख बिलख कर रोना मेरा,
कोई सुन ना पाता था ...
अंदर ही अंदर मुरझा जाती थी,
कोई देख ना पाता था...
कैसे बोलूं ,कैसी थी वो ?
एक भयानक रात ....
जिंदगी भर का कलंक लगा कर,
चली गई वो रात.......
सपने मेरे रोंद रोंद कर,
गुजर गई वो रात...
नाम मेरा बदनाम कर कर
भाग चली वो रात....
डर डर कर में सहमी जाऊं,
ऐसी थी वो रात.....
क्यों होता है ऐसा कभी,
समझ ना आए वो रात...
बेटी बहन कभी किसी की,
ना देखे वो रात....
क्यों दरिंदे घूम रहे हैं,
देखो काली रात....
आज भी अकेली रह ना पाऊं
ऐसी थी वो रात....
कभी किसी की जिंदगी में,
न आए भयानक रात......
