भय
भय
छुपके बैठा है वो
मेरे अन्दर कहीं
पूछती हूँ तो भी
नाम बताता नहीं
शान्त हो खोजती हूँ तो
अदृश्य हो जाता है कहीं
बस अचानक आता है वो
मेरा मन विचलित करने यूहीं
हर उस नये मोड़ पर जो
जाता है नई उँचाईयों पर कहीं
शायद यही चाहता है वो
की मैं रहूँ बस सहमी खड़ी यहीं
लेकिन यकीनन वो
मेरी ताक़त को जानता नहीं
पहचानकर जल्द उसको
मैं उसका अस्तित्व मिटा दूँगी
और अपनी हर कोशिश को
कामयाबी का सिला दूँगी
हो चाहे कितना भी बड़ा भय वो
मैं उससे भयभीत ना रहूँगी
मैं उससे भयभीत ना रहूँगी