भवों का भावार्थ
भवों का भावार्थ
जब कोई अनिश्चितता आती है, तो
उसकी अस्वीकरण का भाव है डर ।
परंतु उसी अनिश्चित स्थिति को
मनपूर्वक स्वीकारने का भाव है धीर ।।
जब कोई अवांछित स्थिति हो,
तब उसकी अस्वीकरण का भाव है क्रोध।
किंतु उसी अवांछित स्थिति को
शांति से निहारने पर मिलेगा बोध।।
जब प्रिय साथ उपस्थित न हो,
तब भौतिक दूरी से दुखी होना हे रति।
उसी अनुपस्थिति की भलाई को
समझ के मन से एक होना हे प्रीति।।
ऐसे ही समझेंगे सभी भावों के अर्थ,
स्वीकरण से शुद्ध भाव जैसे प्रशंसा और उदारता।
अस्वीकरण से अशुद्ध भाव जैसे जलन और स्वार्थ,
शुद्ध या अशुद्ध भाव तो स्वभाव पर ही लगता।।
