भूलें सदा चुभा करती हैं
भूलें सदा चुभा करती हैं
नयनों से जो आंसू बहते,
जग के सुख-दुख को हैं कहते;
अंत:मन की पीड़ाएँ नित,
श्वासों से उलझा करती हैं;
शूल नहीं पथ में मानव के,
भूलें सदा चुभा करती हैं।
बात अजब है अजब पहेली,
बहुत पुरातन मगर नवेली;
युगों-युगों से युगों-युगों तक,
मानव बीच बुझा करती हैं;
शूल नहीं पथ में मानव के,
भूलें सदा चुभा करतीं हैं।
