बहुत याद आती है जब।
बहुत याद आती है जब।
यह ना जानें मैं कब से तुमसे कहना चाहता हूं,
जब भी देखता हूं मैं सुबह की सूरज की लालिमा,
जब भी रात में सितारों से भरे हुए उस आसमान को,
मुझे बहुत याद आने लग जाती है बस तुम्हारी।
खिलती हुई कोई गुलाब की कली अपने बगीचे में,
सर्दी में नंगे पैरों से घास के मैदान पर मैं चलता हूं,
ना चाहते हुए भी जब मैं आईने में स्वयं को देखता हूं,
मुझे बहुत याद आने लग जाती है बस तुम्हारी।
जितने भी त्यौहार आते हैं और चले जाते हैं,
जब भी उत्सवों का आवागमन होने लगता है,
मौसमों का आना और फिर कुछ कह जाना ,
मुझे बहुत याद आने लग जाती है बस तुम्हारी।
सावन के मौसम में वो थोड़ी सी ठंडक होने लगती,
गरजना शुरू होने लगता काले घने बादलों का जब,
बूंदें गिरती पानी की छोड़कर दामन जब बादलों का,
मुझे बहुत याद आने लग जाती है बस तुम्हारी।

