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Sudheer Kumar pal

Abstract

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Sudheer Kumar pal

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भंग की तरंग

भंग की तरंग

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जोगिरा सारा रा रा

फागुन का रंग चढा है ऐसा झूम रहे होरियार।

मस्ती में बस्ती डोले,बरस रहा है प्यार

जोगिरा सारा रा रा

आसमान से रंग बरसे ,हो गई धरती लाल।

रंग खेलने से जो भागे,हो गया बुरा हाल।

जोगिरा सारा रा रा

होली में तो मिटे बुराई,खिले प्रेम के रंग

बैर भाव भूल करके सब झूम रहे एक संग

जोगिरा सारा रा रा

होठो पर मुस्कान सजी चेहरे पे रौनक आई 

फागुन मीठी तान छिड़ी,झूम रही है पुरवाई।

जोगिरा सारा रा रा

पिचकारी से रंग बरस रहा,उड़ रहा है गुलाल।

रंग लगाया गोरी को, काले कर दिया गाल।

जोगिरा सारा रा रा


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