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Sandeep Gupta

Inspirational

4.9  

Sandeep Gupta

Inspirational

भीड़ से निकल अलग

भीड़ से निकल अलग

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जो हाथ में हुनर है तेरे,

पास में जिगर है तेरे,

तो तप ले थोड़ा आग में,

निखार ख़ुद को स्वर्ण कर ।


जो पंख हैं लगे तेरे,

तो शाख़ पर बैठा है क्यूँ,

खोल पंख, उड़ ले ज़रा,

ये आसमां तेरा ही है ।


जो 'आज' है पास तेरे,

जी ले उसी में डूब के,

'कल' गया सो गया,

पर 'कल' को सँवार ले।


जो बुन रहा तू स्वप्न बड़े,

तो नींद से भी जाग कभी,

यथार्थ की धरा पर,

कर सृजन! सृजन कर पुनः

बुन एक स्वप्न नया।


जो दिल है हीरे का तेरा,

तो दर-ब-दर भटक रहा है क्यूँ,

तराश ख़ुद को ख़ुद ही ले,

जगमगा प्रभा से तू धरा।


जो हाथ में हुनर है तेरे,

पास में जिगर है तेरे,

तो रच एक इतिहास नया,

'आ रहा हूँ' उद्घोष कर,

बाँध मुट्ठी, खींच बाँहें,

भीड़ से निकल अलग !



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