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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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भगवान बिक रहा है

भगवान बिक रहा है

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अपवादों का दौर छिड़ रहा है

कोई आवारा मसीहा बन

इस सांचे में रिस रहा है,

तंगहाल ही जानते हैं

जेब खाली का सबब,

यह अलग बात है आज

देश आर्थिक तंगी में खिंच रहा है।

अदना सा फसाना बनाकर

रख दिया इस जिंदगी ने,

कितनो ने यह कहा देखो

बाज़ार में मन्दिर भी बिक रहा है,

भगवान बिक रहा है तरह-तरह से

इंसान खरीद रहा है देखो तरह-तरह से,

यह नादान की है नादानी

या खुद अपनी मर्ज़ी से

यह भगवान बिक रहा है।

        


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