भगत
भगत
सदियों में एक ही भगत जन्म लेता है,
जो वतन मिट्टी के लिए मर मिटता है!
जिसकी हर सांस बस वतन की माला
जपती, हर कदम इन्कलाब प्रति उठता!
विदा हुआ होगा भगत हिद सर जमी से,
कसम से आसमाँ फुट फूटकर रोया होगा!
इन्कलाब की आग लगाई खुद को मिटाकर,
दुश्मनों के आगे जो खड़ा रहा सीना तानकर!
ओये भगत! तेरी मौत भी रोई होगी तेरी मौत से,
कान्तासुत भगत जैसा सपूत मिलता कयामत से!