भारत का कुंभ मेला
भारत का कुंभ मेला
कुम्भ को, कुम्भ में लाया
जीवन कुम्भ को,
कुम्भ में ले आया।
जीवन के दर्शन को,
साध आया हूँ।
मन की तृष्णाओं से,
लेकिन कहाँ !
निकल मैं पाया।
जीवन कुम्भ को,
कुम्भ में ले आया।
प्रश्नों में ऐसा उलझा
कोई उत्तर न दें पाया।
तेरी काया तेरी माया।
समझा और जान न पाया।
तृष्णाओं को सौंपने तुझको
मैं जीवन कुम्भ ले आया।
तुममें मिलूँ, तुम-सा बनूँ
हर आस को भरके ले आया।
तुम जल जीवन के कुम्भ-कुम्भ
मैं जीवन कुम्भ,
कुम्भ से भरने आया।
