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Archana Chawla

Inspirational

4  

Archana Chawla

Inspirational

भाभी जी सब्जी ले लो

भाभी जी सब्जी ले लो

2 mins
403


मेरी नजर बस एक टक उसी को निहार रही थी

धूप में पसीने से लत पत वो भी मुझे ही पुकार रही थी

भाभी जी सब्जी ले लो

ताजी ताजी सब्जी ले लो

कानों को सुनाई तो उसकी आवाज दे रही थी

पर दिल को जैसे उसकी टीस सुनाई दे रही थी

सब्जी पर पानी के साथ अपने पसीने को उकेलती

वो मुझसे एक गिलास पानी मांग रही थी

उम्र ही क्या थी उसकी महज सोलह साल

पर सब्जी का हिसाब ऐसा जैसे उम्र गुजार रही थी

पड़ोसन ने आकर भाव पूछा सब्जी का

वो भी सयानी सब्जी को बड़ा महंगा बता रही थी

कुछ देर तक चली बहस दोनों में तो दिल ने कहा

क्या इस बच्ची पर उसको जरा भी दया नहीं आ रही थी

न वो मानी ना वो हारी बहस जैसे बढ़ी जा रही थी और

मुझे रूप में उसके तपते सोने सी झलक दिखी जा रही थी

सोचने लगी मैं खड़े खड़े

मैं दो घड़ी भी धूप में खड़ी नहीं रह पाई जब तक वो पानी पीये

और ये बच्ची कैसे हंस के धूप से दोस्ती करे जा रही थी

ममता की छांव तले प्यार मिलता हो जैसे

वैसे ही भूख में एक नजर उस पल पर पड़े जा रही थी

बेशक स्वाद खाने का मां के हाथों का ही है

पर मुझे उसके पसीने की महक आज सब्जी के मसालों से आ रही थी

तड़का बेशक हींग का लगाया मां ने

पर गर्मी तेल की उसके जलने की सी लगी जा रही थी

सोचा अब न भाव सब्जी का मैं करूंगी

ना मेरे सामने किसी को करने दूंगी

जो किया तो उसको धूप में दो घड़ी खड़े रखूंगी

घर बैठे मिल जाता है सब कुछ इन गरीबों से

पर इंसान की फितरत गंदे पानी ज्यों बहे जा रही थी



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