बेवक्त वक्त
बेवक्त वक्त
वक्त ने,उस वक्त को इस कदर संभाला ,
कि वो वक्त , अब बेवक्त हो गया।
मेरे पास जो वक्त , बेवक्त आया था ,
वो वक्त, मेरे लिए अब अनजान हो गया ।।
वक्त ने क्या दिया ? क्या न दिया ?
ये वक्त जाने मुझे क्या दिया ?
जिस वक्त ने, उस वक्त में जो भी दिया ,
अब तक इस वक्त ने वापस ले ही लिया।।
वक्त को, उस वक्त में समझना चाहता था ,
पर वक्त ने,बेवक्त ही कहीं और फंसाया था।
जब तक समझ पता वक्त को मैं ,
तब तक वक्त, बेवक्त हो गया ।।
जिस वक्त, जो वक्त भाया मुझको ,
उस वक्त, वो वक्त जुदा हो गया।
चाहता था बिताऊँ कुछ वक्त उसके साथ ,
पर वक्त अक्सर बेवक्त हो गया।।
जब विकत समय आया मेरे वक्त में,
ठहर गया वो वक्त, मेरे वक्त में।
चाहता था चला जाये वो मेरे वक्त से ,
पर वो अड़ा, खड़ा रहा मेरे वक्त में।।
इस वक्त में उस वक्त के ,
घाव बड़े गहरे हैं ,
कितना वक्त बीत गया ,
फिर भी अभी ठहरे हैं ।।
मैं नहीं जाता उस ओर,
जिस ओर वक्त के पहरे हैं
वक्त के चादर ने ढक दिया ,
उन जख्मों को जो गहरे हैं।।
पर कुरेदा जब उस वक्त को ,
तो वो फिर से हरे हैं
आह! निकली सोच कर ही ,
अश्रुओं ने नेत्रों को भर डाला।।
फिर सोचा हंसा और बोला,
मैंने बेवक्त ही वक्त हो कुरेद डाला
अब फिर से इस वक्त में, बेवक्त चल दिया ,
बेवक्त वक्त को भी संभाल के रख लिया ।।
