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Vipin Kumar 'Prakrat'

Abstract

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Vipin Kumar 'Prakrat'

Abstract

बेवक्त वक्त

बेवक्त वक्त

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वक्त ने,उस वक्त को इस कदर संभाला ,

कि वो वक्त , अब बेवक्त हो गया।

मेरे पास जो वक्त , बेवक्त आया था ,

वो वक्त, मेरे लिए अब अनजान हो गया ।।


वक्त ने क्या दिया ? क्या न दिया ?

ये वक्त जाने मुझे क्या दिया ?

जिस वक्त ने, उस वक्त में जो भी दिया ,

अब तक इस वक्त ने वापस ले ही लिया।।


वक्त को, उस वक्त में समझना चाहता था ,

पर वक्त ने,बेवक्त ही कहीं और फंसाया था।

जब तक समझ पता वक्त को मैं ,

तब तक वक्त, बेवक्त हो गया ।।


जिस वक्त, जो वक्त भाया मुझको ,

उस वक्त, वो वक्त जुदा हो गया।

चाहता था बिताऊँ कुछ वक्त उसके साथ ,

पर वक्त अक्सर बेवक्त हो गया।।


जब विकत समय आया मेरे वक्त में,

ठहर गया वो वक्त, मेरे वक्त में।

चाहता था चला जाये वो मेरे वक्त से ,

पर वो अड़ा, खड़ा रहा मेरे वक्त में।।


इस वक्त में उस वक्त के ,

घाव बड़े गहरे हैं ,

कितना वक्त बीत गया ,

फिर भी अभी ठहरे हैं ।।


मैं नहीं जाता उस ओर,

जिस ओर वक्त के पहरे हैं

वक्त के चादर ने ढक दिया ,

उन जख्मों को जो गहरे हैं।।


पर कुरेदा जब उस वक्त को ,

तो वो फिर से हरे हैं

आह! निकली सोच कर ही ,

अश्रुओं ने नेत्रों को भर डाला।।


फिर सोचा हंसा और बोला,

मैंने बेवक्त ही वक्त हो कुरेद डाला

अब फिर से इस वक्त में, बेवक्त चल दिया ,

बेवक्त वक्त को भी संभाल के रख लिया ।।



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