बेटी और भ्रूण हत्या
बेटी और भ्रूण हत्या
आंगन की फुलवारी बेटी,
खिलती घर महकता है,
रिश्तों की है क्यारी बेटी,
जिससे रिश्ता नया पनपता है,
बेटी ही वो फ़ूल है,
जो शोभा घर की होती है,
पढ़ लिख कर विद्वान बने जो,
शान देश की होती है,
छुटपन में ही समझदार बन ,
जी आदत बन जाती है,
अपनी प्यारी बातों से,
सबकी चाहत बन जाती है,
मां का संबल भी बनती है,
और पिता की परछाई,
दुनिया से जब थक जाओ,
ये बेटी तब है पुरवाई,
अपने नन्हे हाथों से जब,
सिर पिता का सहलाए,
दुनियादारी याद रहे ना,
स्वर्ग धरा ये बन जाए,
जो रिश्तों के लिए ही केवल,
जीवन अपना जी लेती है,
कैसे रिश्तों की काली छाया,
जीवन उसका ले लेती है,
जो मां की आंखों में आंसू,
एक पल ना सह पाती है,
कैसे वो मां ही अपनी,
बेटी की हन्ता बन जाती है,
जिस बेटी के लिए पिता का,
प्यार ही जीवन होता है,
कैसे निर्दयी हो पिता,
ऐसा जीवन ले लेता है,
वो जो प्यार निभाती और बांटती,
ना दुनिया में आ पाती है,
जो है खोए रिश्तों का जीवन,
गर्भ में ही खो जाती है,
दुनिया में आने दो उसको,
खुशियों से भर देगी जीवन,
हर सुख दुख में साथ चलेगी,
घर को बना देगी एक उपवन,
प्रभु की सुंदर रचना है बेटी,
जिससे जीवन चक्र संवरता है,
जिसके घर आ जाए बेटी,
वो घर सदा महकता है।।